सबसे पहले रामायण महाकाव्य किसने लिखी, किसने सुनी और किसने सुनाई?

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सबसे पहले रामायण महाकाव्य किसने लिखी, किसने सुनी और किसने सुनाई??

सबसे पहले रामायण महाकाव्य किसने लिखी, किसने सुनी और किसने सुनाई?

सबसे पहले रामायण महाकाव्य किसने लिखी, किसने सुनी और किसने सुनाई? आध्यात्मिक रामायण को ब्रह्माण्ड पुराण से निकाला गया है, ब्रह्माण्ड पुराण को श्री वेदव्यास द्वारा अवतरित किया गया है। आध्यात्मिक रामायण के लेखक व्यास जी हुए। अध्यातम रामायण कथा को श्री राम को श्री नारायण के अवतार रूप में श्रीराम के दिव्यता के दृष्टिकोण से पता चलता है। यह वाल्मीकि के समानांतर सात कांडों में संगठित है।

वाल्मीकि रामायण राम के स्वभाव पर जोर देता है

यह आमतौर पर योग वशिष्ठ के रूप में जाना जाता है) यह मुख्य रूप से वशिष्ठ और राम के बीच एक संवाद है जिसमें वशिष्ठ अद्वैत वेदांत के कई सिद्धांत सिद्धांतों को आगे झुकाते हैं। इसमें कई उपाख्यान और दृष्टांत कहानियां शामिल हैं

दशग्रीव राक्षस चरित्रम वधम (लगभग 6वीं शताब्दी मिलने) कोलकाता की इस पांडुलिपि में पांच कांड हैं: बालकंद और उत्तराखंड में कमी है। यह संस्करण राम को भगवान से मनुष्य के रूप में चित्रित करता है।

आनंद रामायण का स्रोत भी भगवान वाल्मीकि द्वारा माना जाता है, हालांकि यह श्रीराम की कहानी को संक्षेप में लिखा गया है। यह रामायण राम के जीवन के अंतिम वर्षों का वर्णन करता है और इसमें रावण द्वारा सीता के अपहरण और राम द्वारा रामेश्वरम में शिव लिंगम की स्थापना शामिल है।

अगस्त्य रामायण का उद्गम श्री अगस्त्य मुनि के द्वारा माना जाता है

अद्भूत रामायण का उद्गम भी वाल्मीकि रामायण या भगवान वाल्मीकि द्वारा जाना जाता है। इसकी सबसे बड़ी सीता की भूमिका है, और इसमें उनके जन्म के चरित्र की एक अतिरिक्त कहानी के साथ-साथ रावण के बड़े भाई, जिसे महिरावण के नाम से जाना जाता है और 1000 सिर के साथ उसका हार का एक विवरण शामिल है।

रामायण की कहानी को अन्य संस्कृत ग्रंथों में भी वर्णित किया गया है, जिनमें शामिल हैं: महाभारत (वन पर्व के रामोख्यान पर्व में); विष्णु पुराण के साथ-साथ अग्नि पुराण में भी मिलता है।

रामायण सबसे पहले किसने लिखी थी ?

ये बात भारत के 99% लोग जानते हैं की रामायण की महर्षि वाल्मीकि ने सबसे पहली रचना की। आइए जानते हैं कौन हैं महर्षि वाल्मीकि ??

महर्षि वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों की श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है। वह संस्कृत भाषा के आदि कवि और सत्य सनातन धर्म ((आज कल ये हिन्दू में सिमट गए हैं) के आदि काव्य ‘रामायण’ के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं। महर्षि कश्यप और अदिति के नवमपुत्र वरुण (आदित्य) से उनका जन्म हुआ उनकी माता चर्षणी और भाई भृगु थे। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है, इसलिए इन्हें प्राचेतस् नाम से उल्लिखित किया जाता है। उपनिषद के विवरण के अनुसार यह भी अपने भाई भृगु की विशिष्ट परम ज्ञानी थे।

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महर्षि वाल्मीकी का जीवन चरित्र :-

एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि बनने से पूर्व वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाते थे तथा परिवार के पालन के लिए लोगों को लूटा करते थे। एक बार उन्हें निर्जन वन में नारद मुनि मिले तो रत्नाकर ने उन्हें लूटने का प्रयास किया। तब नारद जी ने रत्नाकर से पूछा कि- तुम यह छोटा कार्य किसलिए करते हो?, इस पर रत्नाकर ने जवाब दिया कि अपने परिवार को पालने के लिए।

इस पर नारद ने सवाल किया कि तुम जो भी अपराध करते हो और जिस परिवार के पालन के लिए तुम इतने अपराध करते हो, क्या वह तुम्हारे जामा का अधिकार बनने को तैयार होंगे। इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए रत्नाकर, नारद को पेड़ से बांधकर अपने घर गए। वहां जाकर उन्होंने बारी से पत्नी, माता पिता आदि से पूछा कि क्या तुम मेरे पाप में भागीदार बनोगे ? वह यह जानकर स्‍तब्ध रह गया कि परिवार का कोई भी व्‍यक्‍ति उसके पाप का दावेदार बनने को तैयार नहीं है।

लौटकर उन्होंने नारद के चरण पकड़ के लिए।

तब नारद मुनि ने कहा कि- हे रत्नाकर, यदि आपके परिवार वाले इस कार्य में आपके अधिकार नहीं बनना चाहते हैं तो फिर उनके लिए यह पाप क्यों करते हैं। इस तरह नारद जी ने उन्हें सत्य के ज्ञान से पेश किया और उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश भी दिया था, लेकिन उन्होंने ‘राम’ नाम का उच्चारण नहीं किया था। तब नारद जी ने विचार करके उन्हें मारा-मेरा जपने के लिए कहा और मरा रटते-रटते यही ‘राम’ हो गए और निरंतर जप करते-करते, ध्यान में बैठे हुए वरुण-पुत्र के घर को दीमकों ने अपना बिस्तर लपेट लिया था । साधना पूरी तरह से करके जब यह दीमकों के घर (जो वाल्मीकि कहते हैं) से निकले तो लोग इन्हें वाल्मीकि कहने लगे। और वे ऋषि वाल्मीकि बन गए।

महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य का पहला श्लोक कैसे लिखा?

एक बार महर्षि वाल्मीकि नदी के किनारे क्रौंच के जोड़ों को निहार रहे थे, वह जोड़ी प्रेमालाप में लीन था। तभी एक व्याध ने क्रौंच बर्ड के एक जोड़े में से एक को मार दिया। नर पक्षी की मृत्यु से व्यभिचार महिला पक्षी विलाप करने लगी।

उसका यह विलाप स्वयं के मुख से सुन कर वाल्मीकि ही है

मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः धरतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।

इसी महाकाव्य श्लोक का प्रवाह हुआ और यही महाकाव्य रामायण का आधार बना। महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित पावन ग्रंथ रामायण में प्रेम, त्याग, तप व यश की भावनाओं को महत्व दिया गया है। वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना करके हर किसी को सदमार्ग पर चलते की राह दिखाई।

सर्वप्रथम रामायण में किसने सुना और रामायण को किसने सुना?

यह जानकारी आपको आश्चर्यचकित करने वाले वेदों और मान्यता के अनुसार …रामायण की कहानी सबसे पहले स्वयं श्री राम ने ही सुनी थी वो भी अपने पुत्रों “लव” और “कुश” के मुख से। जब श्री राम ने ये कहानी सुनी तो उन्होंने बालको से पूछा कि हे बालको ये कहानी तो बहुत ही अच्छी है किसकी है ??

तो लव-कुश ने उत्तर दिया आपकी ही कहानी है…तो श्री राम ने हसकर कहा “नहीं ये मेरी कहानी नहीं हो सकती…इसमें जो राम है वो बहुत ही महान है, में उतना नहीं”।

क्या नारद ऋषि ने सबसे पहले रामायण वाल्मीकि को सुना?

जैसा कि आप जानते हैं कि इस दुनिया में सारा ज्ञान शिव जी के मुख से सुना है, जिसकी उन्होंने माता सती और पार्वती को सुना है, तो सबसे पहले –

  • श्री रामायण का वर्णन शिव जी ने माता पार्वती से किया है
  • और श्री काकभुशुण्डि (काकभुशुंडी) (कौआ) द्वारा सुना गया था
  • उसके बाद श्री नारद ने श्री काकभुशुण्डि से सुना
  • और श्रीनारद जी ने रामायण कथा को वाल्मीकि को सुना था जिसे सुनकर उनका ह्रदय परिवर्तन हुआ था। और उस रामायण कथा को काव्य में महर्षि वाल्मीकि ने लिखा है। कहते हैं कि जब सीता जी अपने पुत्रों (लव-कुश) के साथ उनके अजरों में रहती थीं तो उन्हें (वाल्मीकि) पहले से ही होने वाली घटना के बारे में पता था। नारद मुनि से एकमात्र नाम मरा अर्थात राम नाम की ज्ञान प्राप्ति के बाद वो तपस्यारत गए हो, कि उनके ऊपर दीमक से वाल्मी बन गई। जिसके कारण उनका नाम वाल्मीकि पड़ गया। वाल्मीकि की अपनी रामायण ही अर्थात संस्कृत रामायण में उन्होंने एक घटना का वर्णन करते हुए लिखा कि –

एक बार महर्षि तमसा नदी के तट के किनारे स्नान के लिए गए थे कि उन्होंने देखा कि एक बहेलिये ने कामरत क्रौंच (सारस) पक्षियों के जोड़ों में से नर पक्षी का वध कर दिया और मां पक्षी विलाप करने लगे| उसके इस विलाप को सुन कर वाल्मीकि भगवान की करुणा जाग उठी और द्रवित अवस्था में उनके मुख से स्वतः ही यह श्लोक फूट पड़ाः
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः धरतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।’
(अरे बहेलिये, तूने काममोहित मॉन्टरन क्रौंच पक्षियों को मारा है। जाँ कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं होगी|)
फिर उन्होंने अपने मन के श्राप पर विचार किया। और सोचा मैंने इस श्लोक को कितना लयबद्द कहा है। और फिर श्री नारद आ जाते हैं और उन्हें श्रीराम की कथा सुनाई देती है।

इस दौरान वो श्री राम से भी मिलते हैं। श्री राम के पुत्रो लव और कुश का पालन भी श्री वाल्मीकि जी के आश्रम में ही हुआ था। जहाँ वालिमिक जी ने दोनों पुत्रों को अपनी संस्कृत रामायण को लयबद्द तरीके से सुनाया। जिसके बाद दोनों पुत्रों ने गाकर अपने पिता श्री राम को सुना था।

  • जब श्री हनुमान जी लंका में अशोक वाटिका में चढ़ने के ऊपर बैठे थे और माता सीता के नीचे थे तो उनका अपना परिचय देने के लिए उन्होंने पूरी राम कहानी एक भजन के रूप में सुनी, लेकिन वो रामायण श्री राम जन्म से लेकर वही तक था जहां तक उन्होंने खुद लंका में प्रवेश किया था और फिर चढ़ाई के ऊपर बैठे थे। जिसे सुनकर माता सीता को थोड़ा विश्वास हुआ।
  • फिर श्री राम के पुत्रो श्री लव श्री कुश ने इसी रामायण को अपने श्री पिता राम को सुना था।

कृपया ध्यान दें

गोस्वामी तुलसीदास महाराज ने रामायण को संस्कृत की भाषा में लिखा था, लेकिन तुलसीदास ने उत्तर रामायण नहीं लिखा। कहते हैं इसलिए उन्हें और शोक सहनीय नहीं हुआ। और श्रीराम को विदा करने की शक्ति उनके मन में नहीं थी। हालांकि बाद में इसका उत्तर रामायण नाम देकर जोड़ दिया गया।

‘हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता।’ तुलसी बाबा तो पहले ही कह गए हैं। हरि अनंत हैं। उनकी कथाएं भी अनंत हैं। इन सन्त को संत लोग बहुत तरह से कहते हैं-सुनते हैं।

सनातन धर्म ही सत्य है और सत्य ही सनातन है। जिसका एक उदहारण इस प्रकार है।

विष्णु पुराण में सभी नौ ग्रहो, सूर्य, चंद्र आदि का वर्णन मिलता है, उनकी दूरी भी योजन में बताई गई है। और उनका आगमन भी बताया गया है, जिसमें बृहस्पति ग्रह जो के गुरु को सबसे बड़ा बताया गया है। नौवें ग्रह को जिन्हे नवग्रह भी कहा जाता है।

सबसे बड़ा ग्रह वृहस्पति ही क्यों है? ऐसा क्यों नहीं हुआ की कोई दूसरा गृह नहीं हुआ?

उस समय न रॉकेट था न सॅटॅलाइट तो ये सत्य कहां से हमारे ऋषियों को प्राप्त हुआ? यह आप विष्णुपुराण जरूर जायें। इनमें से समस्त सृष्टि का वर्णन मिलता है।

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