जाने कैसे चाल में रहने वाले Hasmukhbahi Parekh ने की थी HDFC की शुरुआत और बना दिया देश का अग्रणी बैंक?
HDFC के मालिक Hasmukhbahi Parekh जी थे, इन्होंने HDFC को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया था। सबसे पहले ICICI Bank में नौकरी के बाद रिटायर होने और HDFC की शुरुआत करने वाले व्यक्ति यही थे। इनकी वजह से ही HDFC आज देश की सबसे दिग्गज कंपनियों में शामिल है।
HDFC Hasmukhbahi Parekh: हसमुखभाई पारेख ने HDFC को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया था. पहले ICICI Bank में नौकरी के बाद रिटायर होने और HDFC की शुरुआत करने वाले व्यक्ति यही थे. इनकी वजह से ही HDFC आज देश की सबसे दिग्गज कंपनियों में शामिल है. हसमुख भाई का जन्म 10 मार्च 1911 को हुआ था. अपने बचपने के दिनों में यह चॉल में रहते थे. बडे़ होने के बाद उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में फेलोशिप करने के बाद में अपने देश में लौटकर बॉम्बे के सेंट जेवियर्स कॉलेज से अपनी डिग्री पूरी की थी
कैसा रहा इनका करियर?
स्टॉक ब्रोकिंग फर्म हरिकिशनदास लखमीदास से इनका करियर की शुरुआत हुई थी और साल 1956 में इन्होंने ICICI Bank को जॉइन कर लिया था. यहां पर रहते हुए उन्होंने मैनेजिंग डायरेक्टर तक की जिम्मेदारियों को संभाला था. बैंक से रिटायर होने के बाद में भी वह बोर्ड के चेयरमैन बने रहे.
भारत के हर नागरिक के पास हो अपना घर
आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) से रिटायर होने के बाद हसमुखभाई पारेख ने अपना सपना पूरा करते हुए HDFC की नींव रखी। उनका सपना था कि हर भारतवासी के पास अपना मकान (House) हो। इसी सोच के साथ उन्होंने वित्तीय संस्थान (Home Finance Institution) एचडीएफसी की शुरुआत की। जिसके कारण उन्हें भारत में होम लोन का जनक (Father of Home Loan) भी माना जाता है।
पहली बार देश में मिली थी होम लोन की सुविधा
इन्होंने अपने रिटायरमेंट के बाद में भी एक भी छुट्टी नहीं ली और 66 साल की उम्र में एचडीएफसी की शुरुआत की. बता दें HDFC देश की पहली ऐसी संस्था है जो पूरी तरह से हाउसिंग फाइनेंस पर ही काम करती है. पारेख एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने देश में पहली बार देश के लोगों को होम लोन की सुविधा उपलब्ध कराई थी.
जिंदगी के आखिरी समय में थे काफी अकेले
हसमुखभाई की पर्सनल लाइफ की बात करें तो उसमें वह काफी अकेले थे. उनकी वाइफ की मौत हो जाने और कोई भी संतान न होने की वजह से अपने आखिरी समय में वह काफी अकेले थे. इस दौरान उनकी भांजी हर्षाबेन और भांजे दीपक ने उनकी जिंदगी के आखिरी पलों में उनका साथ दिया था. बैंकिंग और फाइनेंस सेक्टर में हसमुखभाई को साल 1992 में सरकार की ओर से पद्म भूषण से सम्मानित किया।
चॉल में बीता बचपन
हसमुखभाई पारेख का जन्म साल 10 मार्च 1911 को सूरत में हुआ था। पिता के साथ चॉल (Chowl) में बचपन बिताने वाले हसमुखभाई पारेख देश को सबसे बड़ा निजी क्षेत्र का बैंक देंगे, इसकी कल्पना उनके घरवालों ने भी नहीं की थी। हसमुखभाई ने अपनी काबिलियत के दम पर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में फेलोशिप पाई। उसके बाद स्वदेश लौटकर उन्होंने बॉम्बे के सेंट जेवियर्स कॉलेज से डिग्री पूरी की। अपने करियर की शुरुआत स्टॉक ब्रोकिंग फर्म हरिकिशनदास लखमीदास से की और साल 1956 में वो आईसीआईसीआई बैंक का हिस्सा बनें। यहां उन्होंने डेप्यूटी जनरल मैनेजर से लेकर बैंक के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर तक की जिम्मेदारी संभाली। साल 1976 में वो बैंक से रिटायरमेंट के बाद बोर्ड के चेयरमैन बने रहे। पारेख हमेशा लोगों के बीच रहना पसंद करते थे। उन्हें आम लोगों के बीच रहना, उनके लिए काम करना पसंद था। उनका सपना था कि भारत के हर नागरिक के पास अपना मकान हो। आईसीआईसीआई (ICICI) बैंक से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपने इसी सपने पर काम करना शुरू कर दिया।
निजी जिंदगी में अकेलापन
प्रोफेशनल लाइफ में कामियाबी पाने वाले पारिख का निजी जिंदगी अकेलेपन में बीता। पत्नी की मौत और संतान न होने के कारण उनकी जिंदगी का आखिरी पल अकेलेपन में बीता। उनकी भांजी हर्षाबेन और उनके भांजे दीपक पारिख आखिरी पलों में उनके साथ रहे। हसमुखभाई पारेख ने कई बार अपने अकेलेपन को लेकर बात की थी। उन्होंने इस बात का जिक्र कई बार किया था कि किसी के प्यार करने से ज्यादा जरूरी उसके प्यार को समझना है। बैंकिंग और फाइनेंस सेक्टर में उनके योगदान के लिए साल 1992 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया ।