Kashi Stuti / काशी स्तुति

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काशी स्तुति (Kashi Stuti)
काशी स्तुति (Kashi Stuti)

काशी स्तुति (Kashi Stuti)

काशी स्तुति (Kashi Stuti):- इस कलियुग में काशीरूपी कामधेनु का प्रेमसहित जीवन भर सेवन करना चाहा। यह शोक, सन्ताप, पाप और रोग का नाश करने वाली तथा सभी प्रकार के कल्याणों की खानी है। काशी के चारों ओर की सीमा इस कामधेनु के सुन्दर चरण है, स्वर्गवासी देवता उनकी चरणों की सेवा करते हैं। यहां के सभी तीर्थ स्थान इसके शुभ अंग हैं और नाश अनुपयोगी शिवलिंग इसके रोम हैं।

काशी स्तुति (Kashi Stuti)
काशी स्तुति (Kashi Stuti)

सेइअ सहित सनेह देहभरी, कामधेनु कलि कासी।
समनि सोक-संताप-पाप-रुज, सकल-सुमंगल-रासी ।। 1।।

अर्थात् :- इस कलियुग में काशीरूपी कामधेनु का प्रेमसहित जीवन भर सेवन करना चाहिए। यह शोक, सन्ताप, पाप और रोग का नाश करने वाली तथा सभी प्रकार के कल्याणों की खानी है।

काशी स्तुति (Kashi Stuti)
काशी स्तुति (Kashi Stuti)

मरजादा चहुँओर चरनबर, सेवत सुरपुर-बासी
एरोथ सब सुभ अंग रोम में रहने वाले अमित अबिनासी ।। 2।।

अर्थात्:- काशी के चारों ओर की सीमा इस कामधेनु के सुन्दर चरण है, स्वर्गवासी देवता उनकी सीढ़ियों की सेवा करते हैं। यहां के सभी तीर्थ स्थान इसके शुभ अंग हैं और नाश अनुपयोगी शिवलिंग इसके रोम हैं।

काशी स्तुति (Kashi Stuti)
काशी स्तुति (Kashi Stuti)

अंतरऐन ऐन भल, थन फल, बच्छ बेद-बिस्वासी ।
गलाकंबल बरुना बिभाति जनु, लूम लसति, सरिताऽसी ।। 3।।

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अर्थात् :- अंतगृही (काशी का मध्यभाग) इस कामधेनु का ऐन (गद्दी) है। अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष- ये चारों फल इसके चार गीत हैं; वेद-शास्त्रों पर विश्वास रखने वाले आस्तिक लोग इसके बछड़े हैं-विश्वासियों पुरुषों को ही इसमें निवास करने से मुक्तिरूपी अमृतमय दूध मिलता है; सुन्दर वरुणा नदी अपनी गल-कंबल के समान शोभा बढ़ा रही है और असी नामक नदी पूँछ के रूप में शोभित हो रही है।

काशी स्तुति (Kashi Stuti)
काशी स्तुति (Kashi Stuti)

दंडपाणि भैरव बिषाण, मलरुचि-खलगन-भयदा-सी
लोलदायनेस त्रिलोचन लोचन, करनघंट घंटा-सी ।। 4।।

अर्थात्:- दण्डधारी भैरव इसके सिंह हैं, पाप में मन रखने वाले दुष्टों को उन सींगों से यह सदा भयभीत रहता है। लोलार्क (कुण्ड) और त्रिलोचन (एक तीर्थ) इसके नेत्र हैं तथा कर्णघण्टा नामक तीर्थ इसके गले का घण्टा है।

काशी स्तुति (Kashi Stuti)
काशी स्तुति (Kashi Stuti)

मणिकर्णिका बदन-ससि सुंदरि, सुरसरि-सुख सुखमा-सी ।
स्वारथ परमारथ परिपूरन, पंचकोसि महिमा-सी ।। 5।।

अर्थात् :- मणिकर्णिका का चन्द्रमा के समान सुन्दर मुख है, गंगाजी से मिलने वाला पाप-ताप-नाशरूपी सुख का शोभा है। भोग और मोक्ष रूपी सुखों से संपूर्ण पंचकोसी की परिक्रमा ही इसकी महिमा है।

काशी स्तुति (Kashi Stuti)
काशी स्तुति (Kashi Stuti)

बिस्वनाथ कृपालुचित, लालति नित गिरिजा-सी ।
सिद्धि, सची, सारद पूजहिं मन जोगवति रहति रमा-सी ।। 6।।

अर्थात्:-दयालु हृदय विश्वनाथजी इस कामधेनु का पालन-भ्रम करते हैं और पार्वती-सरीखी स्नेहमयी जगज्जनी इस पर सदा प्यार करती रहती हैं; आठों सिद्धियाँ, सरस्वती और इन्द्राणी शची का पूजन करती हैं; जगत् का पालन करने वाली लक्ष्मी-सरीखी का रवैया उपयोगकर्ता रहते हैं।

काशी स्तुति (Kashi Stuti)
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पंचाच्छरी प्राण, मुद माधव, गब्य सुपंचनदा-सी ।
ब्रह्म-जीव-सम रामनाम जुग, आखर बिस्व बिकासी ।। 7।।

अर्थात् :- ‘नमः शिवाय’ यह पंचाक्षरी मंत्र ही इसके प्राण हैं। भगवान् विन्दुमाधव ही आनन्दित हैं। पंचनदी (पंचगंगा) तीर्थ ही इसके पंचगव्य हैं। यहाँ संसार को प्रकट होने वाले राम-नाम के दो अक्षर ‘रकार’ और ‘मकार’ इसके अधिष्ठाता ब्रह्म और जीव हैं।

काशी स्तुति (Kashi Stuti)
काशी स्तुति (Kashi Stuti)

चारितु चरति करम कुकरम करि, मरत जीवगण घासी।
लहत परमपद पय पावन, जेहि चहत प्रपंच-उदासी ।। 8।।

अर्थात् :- यहां मरने वाले का सब सुकर्म और कुकर्म रूपी घास यह चर जाती है, जिससे उनके समान परमपदरूपी पवित्र दूध मिलता है, विश्व से विरक्त महात्मा चाहा करते हैं।

काशी स्तुति (Kashi Stuti)
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कहत पुराण रची केसव निज कर-करतूति कला-सी ।
तुलसी बसि हरपुरी राम जपु, जो भयो चाहै सुपासी।। 9।।

अर्थात् :- पुराणों में लिखा है कि भगवान विष्णु ने संपूर्ण कला प्राप्त करते हुए अपने हाथों से इसकी रचना की है। हे तुलसीदास ! यदि तू सुखी होना चाहता है तो काशी में मिलते श्रीराम-नाम जपा कर।

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